प्रोबायोटिक खानाः कितना हेल्दी, कितना रिस्की
मार्था हेनरिक्स
बीबीसी फ़्यूचर
29 जनवरी 2019
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इन दिनों प्रोबायोटिक को कई बीमारियों का इलाज बताकर प्रचारित किया जा रहा है.
मोटापे से लेकर दिमाग़ी बीमारियों तक के इलाज के लिए प्रोबायोटिक को रामबाण दवा के तौर पर बताया और खाया जा रहा है.
प्रोबायोटिक खाने की मदद से हमारे पेट में पल रहे जीवाणुओं और कीटाणुओं की आबादी को ताक़त देने का काम भी लिया जा रहा है.
ख़ास तौर से एंटीबायोटिक दवाएं लेने के बाद, जब हमारे पेट के कई कीटाणु मर जाते हैं, तो प्रोबायोटिक खान-पान लेने की सलाह दी जाती है.
इसके पीछे तर्क ये दिया जाता है कि एंटीबायोटिक से नुक़सान पहुंचाने वाले कीटाणुओं के साथ शरीर के लिए फ़ायदेमंद कीटाणु भी मर जाते हैं.
इसलिए उनकी पौध दोबारा उगाने में ये प्रोबायोटिक खाना मदद कर सकता है.
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आंत के बैक्टीरिया – Probiotics Benefits In Hindi
इससे हमारी आंतों में पलने वाले सेहत के लिए मुफ़ीद कीटाणुओं को दोबारा आबाद किया जा सकता है.
भले ही ये बात तार्किक लगे, मगर अब तक इस बात के ठोस सबूत नहीं मिले हैं कि प्रोबायोटिक खाना आपकी आंतों में अच्छे जीवाणुओं को वापस ला सकता है.
बल्कि कई रिसर्च तो ये इशारा करते हैं कि प्रोबायोटिक खाने से आंतों में अच्छे कीटाणु दोबारा आबाद होने में देर ही हो जाती है.
असल में प्रोबायोटिक हर विशेषज्ञ के लिए अलग-अलग मायने रखता है. जैसे वैज्ञानिकों के लिए ये छोटे जीवों का एक नमूना होता है, जो हमारे पेट में रहते हैं.
मगर, सुपरमार्केट में बिकने वाले प्रोबायोटिक उत्पाद इस परिभाषा के खांचे में फिट नहीं बैठते.
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एंटीबायोटिक खाने के बाद
जब रिसर्च के लिए कीटाणुओं के नमूने लिए जाते हैं, तो ये नमूने हर प्रयोगशाला के हिसाब से बदल जाते हैं.
यानी आप किसी एक नमूने को ही असली प्रोबायोटिक नहीं कह सकते हैं.
रैंड कॉर्पोरेशन के सिडने न्यूबेरी कहते हैं, ‘दिक़्क़त ये है कि हम प्रोबायोटिक के किसी ख़ास नमूने को ही आदर्श नहीं कह सकते.
किसी के लिए वो कारगर हो सकता है, तो किसी के ऊपर कोई असर करने में नाकाम रह सकता है.’
सिडने न्यूबेरी ने क़रीब 12 हज़ार मरीज़ों पर की गई 82 रिसर्च की तुलना की. उन्होंने पाया कि प्रोबायोटिक लेने के कुछ फ़ायदे तो होते हैं.
जैसे वो
एंटीबायोटिक खाने के बाद
होने वाली दस्त रोकने में मदद करते हैं. लेकिन, इसमें कौन से बैक्टीरिया कारगर रहे, ये पक्के तौर पर बता पाना मुश्किल होता है.
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प्रोबायोटिक खाने से नुक़सान
प्रोबायोटिक लेना सुरक्षित है या नहीं, ये बताने के लिए कोई अच्छी रिसर्च अभी नहीं हुई है. ऐसा माना जाता है कि
प्रोबायोटिक खाने से नुक़सान
नहीं होगा.
लेकिन, ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब प्रोबायोटिक खाने से लोगों को नुक़सान हुआ. कई लोगों के ख़ून में फफूंद फैल गए.
इसराइल के वीज़मैन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस में हाल ही में एक तजुर्बा किया गया.
इसमें पाया गया कि सेहतमंद लोगों ने भी अगर
एंटीबायोटिक खाने के बाद
प्रोबायोटिक उत्पाद लिए, तो उन्हें नुक़सान हुआ.
उन्हें अपना पेट दोबारा ठीक करने में काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ी. इस रिसर्च की अगुवाई एरान एलिनाव ने की थी.
उन्होंने 21 लोगों को अलग-अलग तरह की एंटीबायोटिक क़रीब हफ़्ते भर तक खिलाई. इसके बाद उनके पेट और आंत की पड़ताल की गई.
रिसर्च के नतीजे
एलिनाव बताती हैं कि एंटीबायोटिक लेने की वजह से इनके पेट के बहुत से कीटाणु मर गए थे.
बाद में इन 21 लोगों को तीन टीमों में बांटा गया. पहले ग्रुप को सिर्फ़ इंतज़ार करने को कहा गया. दूसरे समूह को एक महीने तक प्रोबायोटिक खाने को दिया गया.
और तीसरे ग्रुप के लोगों के पेट में उनके एंटीबायोटिक लेने से पहले के मल को दोबारा आंतों में ट्रांसप्लांट किया गया.
ताकि उनके पेट में पहले आबाद रहे कीटाणु दोबारा घर बसा सकें. इस
रिसर्च के नतीजे
चौंकाने वाले थे.
जिस समूह को प्रोबायोटिक खाने को दिया गया था, उनकी आंतों की रिकवरी की रफ़्तार सबसे बुरी थी.
पांच महीने बाद भी उनके पेट में कीटाणुओं की वैसी बस्ती नहीं बस सकी थी, जो एंटीबायोटिक लेने से पहले की थी.
प्रोबायोटिक का कारोबार
एलिनाव का मानना है कि प्रोबायोटिक लेने का ये बड़ा नुक़सान सामने आया. जिन लोगों के पेट में उनके मल का ट्रांसप्लांट किया गया, उनकी रिकवरी सबसे तेज़ी से हुई.
कुछ दिनों के भीतर ही इस समूह के लोगों के पेट में वो बैक्टीरिया आबाद हो गए थे, जो एंटीबायोटिक लेने के पहले थे.
इस बात के कई सबूत सामने आए हैं कि बीमारी की सूरत में प्रोबायोटिक खाने से फ़ायदा नहीं बल्कि नुक़सान हो सकता है.
बच्चों को भी प्रोबायोटिक देने का कोई फ़ायदा नहीं होता, अमरीका में 886 बच्चों पर हुई रिसर्च के नमूने तो यही कहते हैं.
रिसर्च में प्रोबायोटिक के फ़ायदों से ज़्यादा नुक़़सान सामने आने के बावजूद, दुनिया भर में इसका बाज़ार तेज़ी से पांव पसार रहा है.
साल 2017 में दुनिया भर में
प्रोबायोटिक का कारोबार
1.8 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था. 2024 तक
प्रोबायोटिक का कारोबार
66 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
प्रोबायोटिक से फ़ायदा किसको?
?
एलिनाव कहती हैं कि प्रोबायोटिक के धंधे में बड़े उद्योगपतियों ने बहुत पैसा लगाया हुआ है.
ऐसे में ईमानदारी से कोई एक्सपर्ट शायद ये न बताए कि प्रोबायोटिक कोई जादुई नुस्खा नहीं है.
अमरीका के खाद्य और दवा विभाग ने यूरोप के साथ मिलकर प्रोबायोटिक के इस्तेमाल की गाइडलाइन को तैयार किया है. लेकिन, यूरोप के लोग अभी इसे मंज़ूरी नहीं दे रहे हैं.
हालांकि हम ये नहीं कह रहे कि प्रोबायोटिक को इस्तेमाल ही नहीं करना है. शायद गड़बड़ी हमारे इस्तेमाल के तरीक़े में है.
अक्सर प्रोबायोटिक उत्पाद बड़े सुपरमार्केट या बाज़ार से ख़रीदे जाते हैं. वो कितने कारगार होते हैं, ये तो साफ़ नहीं है.
एलिनाव और उनके साथियों ने इस बात पर भी रिसर्च की थी कि
प्रोबायोटिक से फ़ायदा किसको?
होगा?
बैक्टीरिया की एक जमात
असल में इसका ताल्लुक़ हमारे जीन से है. जीन्स की पड़ताल कर के हम ये जान सकते हैं कि किसे प्रोबायोटिक फ़ायदा करेगा और किसे नुक़सान.
अब इस रिसर्च के बात शायद ये चलन बढ़ जाए कि हर इंसान के लिए ज़रूरी प्रोबायोटिक उसके मिज़ाज के हिसाब से तैयार किया जाए.
अभी दिक़्क़त ये है कि प्रोबायोटिक को जेनेरिक दवाओं की तरह तैयार किया जाता है. ये मान लिया जाता है कि
बैक्टीरिया की एक जमात
हर इंसान के लिए मुफ़ीद होगी.
जैसे कि आप पैरासीटामॉल की टिकिया लेते हैं, तो आप को पता है कि ये अपना काम करेगी.
आंत के बैक्टीरिया
असल में दिमाग़ में दर्द का अहसास कराने वाली तंत्रिकाएं सभी इंसानों में कमोबेश एक जैसी होती हैं. लेकिन, हर इंसान के
आंत के बैक्टीरिया
अलग-अलग होते हैं.
इसलिए उसकी सेहत के हिसाब से प्रोबायोटिक को बनाकर बाज़ार में उतारा जाएगा, तो वो फ़ायदा करेगा.
लेकिन, ये बात करने से कहना बहुत आसान है. हर इंसान के स्वास्थ्य के हिसाब से प्रोबायोटिक तैयार करना बहुत मुश्किल काम है.